Friday, April 22, 2016

बस जो कभी अकेला होता हूँ

बस जो कभी अकेला होता हूँ,
तोह उन पलों को गुनगुना लेता हूँ,
जीनमे थे कुछ यार हसींन।
जिनमे थे कुछ यार अजीज।

आज चारदीवारी में घिर गया हूँ,
तोह याद आता है वोह कॉलेज का आवारापन।
उन बेंचों पर नाम लिखना,
और कैंटीन मैं गप्पे मारना।
उस खुली हवा मैं सांस लेना,
और बेफिक्री से दिन काटना।

चला गया वोह यारो का याराना,
वोह हसीं चेहरों का याद आना।
अब तोह 9 से 5 घिरे रहते हैं,
सुबह से शाम फिरे रहते हैं।
जो फुरसत मिलती है लंच-ब्रेक में,
वोह भी बॉस के नाम किये रहते हैं।

सीख गए कैलेंडर पढ़ना,
तरस गए सन्डे तक आना,
वोह शाम का पांच बजना,
और साल मे एक बार दीवाली का आना।
कुछ छुट्टियों मैं सिमट कर रह गई जिंदगी।
कैद हो गई व्ओह आवारगी,
और सिमट गई दीवानगी।

उन्ही राहो मे कुछ आगे निकल चले हम।
यु कहो- पैनो से चाभियों तक,
और नोटों से क्रेडिट कार्ड तक।
चुबता है अब कार मैं अकेला जाना,
याद आता है वोह, एक बाइक पर चार दोस्तों का आना।
यह बड़ा सा अप्पर्टमेंट भी खली है,
और कॉलेज के कमरो की वोह यादें अभी भी दिल ने नहीं निकली हैं।

कुछो ने तोह शादियां कार ली,
और कुछ विदेशो मे बस ली।
अब कहाँ मुमकिन सबका मिलना,
वोह रात रात तक जगराते करना।
अब तोह ज़ी-न्यूज़ से आज-तक,
और बैडरूम से टॉयलेट तक जाते हैं।
मनो कभी फुरसत मिले तोह,
9 बजे तक सो जाते हैं।

सुना था लोगो को कहते हुए,
कॉलेज से दिन न आएँगे दोबारा।
तब हस दिए थे इन बातो पर,
सोचा था उम्रभर का है यह याराना।
देखो अब कैसी मायूसी है,
शीशे में भी हैरानी है।
चारो तरफ वीरानी है।
नींद मे भी बेचैनी है।

जब कभी फुरसत के दो पल बटोरता हूँ,
तोह उन दिनों की यह तस्वीर देखता हूँ।
याद कर लेता हु वोह पहाड़ी रास्ते।
वोह ढाबे की चाय और कैंटीन के पास्ते।
वोह आखरी गोल्ड-फ्लैक पर सब का झपटना,
और उस एक रोटी की बोटियाँ निचोड़ना।
वोह टी-शर्ट का बदलना,
और एक दूसरे के बिस्तर पर सोना।
सोचता हूँ की फिर कभी मिलेंगे अगर,
तोह मचाएंगे जमकर ग़दर।

बस जो कभी अकेला होता हूँ,
तोह उन पलो को गुनगुना लेता हूँ,
जिनमे थे कुछ यार हसीन।
जिनमे थे कुछ यार अजीज।

3 comments:

  1. Till now I have read your English blogs.. But this hindi one is also awesome...

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