उन हसीन यादो पर, मैं छुप-छुप कर रोया था।
थोडा हस-हस कर रोया था,
थोडा सिसक-सिसक कर रोया था।
माँ तेरी याद मे, आज मैं फिर रोया था।
जो नादानी से घिरा था,
चोट लगे तोह "माँ" कहता था,
डाँट पड़े तोह "माँ" कहता था।
थका हारा जब घर आता था,
तोह सबसे पहले "माँ" चिल्लाता था।
"हो गई गलती, अब छोड़ भी दो" कहकर, उनसे दूर कहीं ले जाती थी।
फिर कैसे मुझे प्यार से तुम समझाती थी,
उन आँसू भरी आँखों की, कैसे तुम पलभर मे नमी छिन ले जाती थी।
और हर मुसीबत से तुम्हारा मुझे बचा लेजाना।
कभी कोई शीशी जो टूटी मुझसे,
तोह तुम्हारा दौड़ कर आ के मेरे हाथो को देखना।
और उसके उप्पर एक ग्लास दूध और पिलाना।
वोह बातो मे लगाकर, मेरी बीच की मांग मिटाना,
वोह कालर का बटन लगाना और कास कर टाई पहनाना।
और मेरे लाख मना करने पर भी,
वोह स्वेटर को कमर से मोड़ना।
उन हसीन यादो पर, मैं छुप-छुप कर रोया था।
थोडा हस-हस कर रोया था,
थोडा सिसक-सिसक कर रोया था।
माँ तेरी याद मे, आज मैं फिर रोया था।
उस भरी भोजनथाल को कैसे मेरे खातिर तुम ठुकरा देती थी।
आलू-टमाटर तोह तुम मुझसे बहुत कटवाती थी,
मगर कभी तुम काटने को प्याज मुझे न देती थी।
छुरे-करची और कद्दूकस तोह तुमने बहुत दिए थे छूने मुझको,
मगर कैसे उस बन्दूक पर मुझको हाथ भी लगाने न देती थी।
वोह दूरदर्शन और केबल तुम मुझसे सही करवाती थी,
विश्वास तोह करती थी तुम मुझपर,
फिर बाइक मे संग बैठने से क्यों डरती थी?
कहती थी मैं हूँ तुम्हारा लाडला,
फिर मेरी चीजे बहना को क्यों दे देति थी?
पर भाग जाती थी नींद जब तोह "आ सोजा" कह देती थी।
सुबह जल्दी उठाकर फिर कहती थी "चल पढ ले अब"
तिलक लगा कर भेजती थी और दही-चीनी खिलाती थी।
वोह मेरी 60 परसेंट को भी कैसे तुम 90 बतलाती थी,
कोई आँख उठा कर जो देखे मुझे तोह, उससे तुम चीड़ जाती थी।
मगर हो जाए कभी उलटी तोह, तुम बिना रुके पीठ सहलाती थी।
माँ हाजमोला तुम खिलाती थी,
और हिंगोली चबवाती थी।
कैसे भरी गर्मी से मैं आता था तोह,
तुम रूहअफजा पिलाती थी।
जो अँधेरा कर दू मैं खेल खेल मे, तोह बुलाने चली आती थी।
माँ शक्तिमान तोह देखने देती थी तुम, पर आहट बंद कर जाती थी।
माँ तुम सन्डे को भी जबरदस्ती नहलवती थी।
उन हसीन यादो पर, मैं छुप-छुप कर रोया था।
थोडा हस-हस कर रोया था,
थोडा सिसक-सिसक कर रोया था।
माँ तेरी याद मे, आज मैं फिर रोया था।
पहले ही सन्डे को तुमने मेरे घर आने की सिफारिश लगाई थी।
कैसे जब मै घर आता था तोह तुम गोद मे सर रख कर सहलाती थी,
दिन भर मे चार भोज खिलाती थी, और "तेरी भूख ही मर गई" कह जाती थी।
यहाँ जाली रोटियां देख कर, और तुम्हारा रखा आचार खा कर।
तुम्हारे हाथ क मुलायम पराठे अब नसीब होते भी नही,
जो लात मार कर रजाई फेक दू रात मे, तोह कोई वापस उडाता भी नहीं।
जो याद बहुत आए तुम्हारी तोह तस्वीर देख कर रात काटता हूँ।
माँ, अब हस देता हु तुम्हारे उस पुराने गुस्से पर भी,
और चोट लगे कभी तोह याद मे तुम्हारी, पी लेता हूँ वोह कड़वा हल्दी वाला दूध भी।
तुम्हारा ही ख्याल लेकर आज दिन मे मैं सोया था।
उन हसीन यादो पर, मैं छुप-छुप कर रोया था।
थोडा हस-हस कर रोया था,
थोडा सिसक-सिसक कर रोया था।
माँ तेरी याद मे, आज मैं फिर रोया था।
